(Pi Bureau)
पूरा अफगानिस्तान तालिबान के कब्जे आ चुका है. वहीं पंजशीर घाटी को भी लड़ाकों ने चारों से ओर घेर रखा है और धीरे-धीरे करीब पहुंचता जा रहा है. इस बीच पंजशीर में डटे अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति और स्वघोषित कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह दिवंगत वॉर लार्ड अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद तालिबान को कड़ी चुनौती दे रहे हैं. सालेह ने साफ कर दिया है कि वो देश छोड़कर भागेंगे नहीं. उन्होंने तालिबान के आगे घुटने टेकने से इनकार करते हुए कहा, ‘एक दिन सिर्फ अल्लाह ही मेरी रूह को यहां से निकालेंगे, लेकिन फिर भी मेरे अवशेष इसी मिट्टी से मिल जाएंगे.’
अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति और स्वघोषित कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने कहा, ‘चाहे कुछ भी हो जाए मैं तालिबानियों के सामने सिर नहीं झुकाऊंगा. सीने पर गोली खा लेंगे, लेकिन सिर नहीं झुकाएंगे.’
पंजशीर को कभी जीत नहीं पाया तालिबान?
पंजशीर काबुल से 150 किलोमीटर दूर पंजशीर को तालिबान कभी नहीं जीत पाया. तालिबान 1998 में भी पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाया था. 1995 में अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में तालिबान को काबुल में हराया गया था. तालिबान अहमद शाह मसूद को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था. 9/11 से ठीक दो दिन पहले अहमद शाह मसूद की फिदायीन हमले में हत्या कर दी गई थी.
पंजशीर में लड़ाई जारी
पंजशीर को कब्जा करने के लिए तालिबान की लड़ाई जारी है. तालिबान ने पंजशीर के तीन जिलों पर कब्जे का दावा भी किया है. मगर पेरिस में सोरबोन विश्वविद्यालय के अफगान विशेषज्ञ गाइल्स डोरोनसोरो ने बताया, “फिलहाल पंजशीर में प्रतिरोध सिर्फ मौखिक है, क्योंकि तालिबान ने अभी तक पंजशीर में प्रवेश करने की कोशिश नहीं की है.”
हालांकि, हथियारबंद लड़ाकों के साथ उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह और अहमद मसूद दोनों ही पंजशीर को तालिबान के खिलाफ लड़ाई में तैयार करने में जुटे हैं. अपने लड़ाकों में जान भरने में लगे हैं, तालिबान को हराने के लिए लगातार बैठकें चल रही हैं.