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Shashwat Tewari
Lucknow चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व पर लखनऊ के एक और बड़े मन्दिर की भक्तिमय खबर आप तक पहुंचा रहे है। चौक स्थित बड़ी कालीबाड़ी मन्दिर और बक्शी का तालाब स्थित मॉ चन्द्रिका देवी मन्दिर के बाद आज हम बात कर रहे है लखनऊ की छोटी कालीबाड़ी मन्दिर की । लगभग 150 वर्षो पहले स्थापित ये मन्दिर वर्ष भर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करता रहता है पर नवरात्रों में मन्दिर की शोभा देखने लायक होती है । विभिन्न प्रकार के पदार्थों से नवदुर्गा में से एक मॉ काली का श्रंगार किया जाता है । कभी अलग अलग फलों और फूलों से तो कभी अनाज से मॉ शोभायमान हो भक्तों के मनोरथ पूर्ण करती है । आज चैत्र नवरात्र चतुर्थ को मॉ कूष्माण्डा की पूजा की जा रही है ।
कैण्ट रोड़ पर कैसरबाग की तरफ बढ़ने पर घसियारी मण्डी स्थित कालीबाड़ी मां काली का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर 150 वर्षो से भी ज्यादा पुराना है जहां पर मां काली पंचमुण्डीय आसन पर बैठी हैं। पंचमुण्डीय आसन (नर, बंदर, सांप, उल्लू, चमगादड़ के सिर से बना आसन) मां का प्रिय आसन है जिसकी वजह से यहां आने वाले भक्त मां से जो मुराद मांगते हैं वह पूरी होती है।
देश में मॉ भगवती के पूजन के दो पन्थ अत्यधिक प्रचलित है । उत्तर भारत में जहॉ मॉ वैष्णों के शुद्ध वैष्णव स्वरूप की सात्विक उपासना पद्धति अपनायी जाती है वहीं पूर्व भारत में वॉमपंथी पूजन को अपनाया जाता है जिसमें देवी की उपासना में बलि और मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है । श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार नवरात्रों के नौ दिनों में मॉ के अगल अलग रूपों की पूजा की जाती है उनमे से कालरात्री के रूप में सप्तमी पूजन किया जाता है । कालरात्री मॉ का स्वरूप महाकाली की ही तरह है जिन्हे शुभंकरी के नाम से भी जाना जाता है । इसके अतिरिक्त मॉ के आदि विग्रह में तीन देवियों समाहित होने का प्रसन्ग आता है जिनमे मॉ लक्ष्मी, मॉ सरस्वती और मॉ काली का स्थान है । उत्तर भारत में मॉ लक्ष्मी और सरस्वती का पूजन होता है और पूर्वी भारत में मॉ काली का । मॉ काली की पूजा बहुधा वॉमपंथी उपासना और तांत्रिक विधान से की जाती है । ऐसे में उत्तर भारत में मॉ काली के प्राचीन मन्दिर बहुत ही पौराणिक महत्त्व के हो जाते है ।
लखनऊ का छोटी कालीबाड़ी मन्दिर भी इसी परम्परा का एक ऐतिहासिक और पौराणिक मन्दिर है जिसकी स्थापना बंगाल से आ कर निवास कर रहे मधुसूदन मुखर्जी ने लगभग 150 वर्षो पूर्व की थी । आइयें जानते है कि क्या विशेताएं है छोटी कालीबाड़ी मन्दिर की ।
कालीबाड़ी मंदिर के वरिष्ठ पुजारी और पुरोहितकाण्ड में पीएचडी कर चुके डॉ अमित गोस्वामी ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना तांत्रिक मधुसुदन मुखर्जी से की थी। वह मां काली के बड़े भक्त थे जो नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या करते थे। मां उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न हुई और उन्होंने तांत्रिक से मंदिर की स्थापना के लिए कहा। उन्होंने आदेश दिया कि वह मंदिर में मां काली की मिट्टी से मूर्ति बनवाए जिसे पंचकुण्डीय आसन पर विराजमान करके पूजा अर्चना करें। जैसा मां काली ने कहा तांत्रिक ने वैसा ही किया। इसके बाद मंदिर में पूजा अर्चना शुरू हो गई। सिद्ध मंदिर होने के कारण इस मंदिर की ख्याति दूर दराज तक होने लगी। यहां नवरात्र पर जो भी भक्त आते हैं उनकी मुराद पूरी होती है। मंदिर में महाअष्टमी और नवमी को विशेष पूजा होती है और शाम की आरती होती है।
छोटी कालीबाड़ी मन्दिर के उपाध्यक्ष गोपीनाथ हाल्दार ने बताया कि मंदिर की खास विशेषता ये है कि यहां पर पशु की बलि के बजाए पेठा फल और गन्ने की बलि दी जाती है। नवरात्र के दिनों में मंदिर सुबह छह बजे से दोपहर एक बजे तक खुलता है। शाम को पांच से रात दस बजे तक मंदिर भक्तों के लिए खुलता है।
जय माता दी ।