कुसुम्भी देवी, कुश ने की थी स्थापना, फूलों से लिखी मन्नत होती है पूरी, चढ़ती है काली चूड़ियां(Pi Exclusive)

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Shashwat Tewari

लखनऊ । जय माता दी मित्रों ! भक्तिमय खबरों की अगली श्रंखला में आज पवित्र नवरात्रों के छठवें दिन मॉ कात्यायनी की पूजा अर्चना की जा रही है और हम आज बात कर रहे है लखनऊ – उन्नाव पर नवाब गंज में स्थित मॉ कुसुम्भी देवी मन्दिर की । लखनऊ के चौक स्थित बड़ी कालीबाड़ी, चन्द्रिका देवी मन्दिर, छोटी कालीबाड़ी, संदोहन देवी मन्दिर के बाद आज बात करेंगे रामायण युग में लव कुश के हाथों स्थापित पौराणिक मन्दिर की । ये एक ऐसा रमणीक स्थान है जहॉ भक्त मॉ आदि शक्ति जगदम्बा की सिद्ध पीठ कर दर्शन कर मनचाही मुरादे पाते है, पवित्र सरोवर में स्नान कर पुण्य कमाते है और भण्डारा जीमते है । बड़ों के साथ बच्चों को भी माता कुसुम्भी देवी की यात्रा बहुत भाती है क्योकिं आस पास के जंगल जहॉ एडवेन्चर प्रदान करते है वहीं पवित्र सरोवर में रहने वाली मछलियां और कछुएं कौतूहल उत्पन्न करते है । लोग अपनी मुरादे पूरी करने के लिये जलजीवों को आटे की गोलियां खिलाते है सरोवर के किनारे ही भोग कर निर्माण कर आपस में मिल बांट कर खाते है । ये पौराणिक महत्त्व का मन्दिर लखनऊ कानपुर राज्यमार्ग पर नवाब गंज कस्बे से महज कुछ किलोमीटर दूर ये मन्दिर कुसुम्भी रेलवे स्टेशन के भी समीप है जहॉ पहुंचने के लिये साल भर पर्याप्त मात्रा में वाहन और साधन उपलब्ध रहते है । नवरात्रों पर कुसुम्भी देवी की छटा ही निराली होती है और दूर दराज़ से आये भक्तजन मॉ कुशहरी के दर्शन प्राप्त कर निहाल हो जाते है ।

क्षेत्रीय लोग बतातें है कि माता कुशहरी देवी की मूर्ति की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पुत्र कुश ने की थी। मंदिर से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि श्रीराम के सीता के परित्याग करने पर उनके आदेश पर सीता को रथ पर बैठाकर लक्ष्मण वन में छोड़ने के लिए रवाना हुए। मार्ग में माता सीता को प्यास लगी तो उन्होंने लक्ष्मण से पानी लाने के लिए कहा। लक्ष्मण ने एक कुएं से पात्र में जल लेने का प्रयास किया तो कुएं से आवाज आई कि पहले मुझे बाहर निकालो, फिर यहां से जल भरो। लक्ष्मण ने वैसा ही किया तो कुएं से एक देवी की मूर्ति निकली। उस मूर्ति को उन्होंने कुएं के पास एक बरगद के पेड़ के नीचे रख दिया और जल लेकर सीता के पास पहुंचे। उन्होंने इस बारे में सीता जी को भी बताया। इसके बाद गंगा तट पर रथ रोककर नाव से बिठूर के पास जंगल में पहुंचे। यहां आने के बाद सीता को बताया कि श्रीराम ने उन्हें त्याग दिया है। सीता जी यह सुनकर दुखी हुईं और कहा अपने भाई से जाकर कहना कि वे गर्भवती हैं। यह सुनकर लक्ष्मण व्यथित हो गए।
इसके बाद लक्ष्मण वापस अयोध्या लौट गए। वन में सीता का विलाप सुनकर बाल्मीकि आए और सीता को अपने साथ लेकर आश्रम चले गए। वहां उन्हें ऋषि मुनियों की पत्नियों के साथ रहने का स्थान दिया। समय आने पर सीता को लव और कुश नामक दो पुत्र हुए।

काफी दिनों बाद नैमिषारण्य धाम में श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान किया। यज्ञ में भाग लेने के लिए बाल्मीकि ऋषि सीता व लव कुश को साथ लेकर चले। रास्ते में उसी स्थान को देखकर सीता जी को याद आया कि लक्ष्मण ने यहां एक देवी मूर्ति रखी थी। तब सीता ने कहा कुश इस देवी मूर्ति की स्थापना करो। कुश ने मां की आज्ञा का पालन कर देवी की स्थापना की।

देवी कुशहरी की मूर्ति करीब 7 फुट ऊपर स्थापित है। कोई भी इसे अपने हाथों से नहीं छू सकता है। वहां पर बैठने वाले पंडित देवी पर प्रसाद चढ़ाते हैं। यूं तो देवी के मंदिर में सुहाग का पूरा साजो श्रृंगार का सामान चढ़ाया जाता है, लेकिन इनमें सबसे खास देवी को चढ़ाई जाने वाली काले रंग की चूड़ियां होती हैं। लोगों की मान्यता है कि इससेे देवी दुर्गा खुश होती हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं।

कुशरही देवी मन्दिर की कई मान्यताओं को भक्तजन अच्छी तरह जानते और मानते है । काली चूड़ियों के चढ़ावे के अतिरिक्त यहॉ भक्तजन फूलों से अपना नाम या अपनी मन्नत लिखते है और ऐसा कहा जाता है कि ये मुराद मॉ जरूर पूरी करती है । भक्तजन अपने पापों के नाश हेतु पवित्र सरोवर में जलजीवों को आटे की गोलियां खिलाते है और यहॉ मन्दिर परिसर में पकाया भोज्य पदार्थ भोग के रूप में ग्रहण कर जीवन धन्य बनाते है । बसरों से अधूरी कामनाओं के लिये मॉ कुसुम्भी देवी मन्दिर के परिसर और आस पास लगे पेडो में भक्तजन मन्नत की चुनरी या कलावा बांधते है जिसे मनौती पूरी होने के बाद भक्तजन खोलने भी आते है और मॉ कुशहरी को धन्यवाद कर दर्शन लाभ अर्जित करते है ।

 

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