संदोहन देवी मन्दिर, जहॉ वर्ष में केवल दो बार होते है मॉ के चरणों के दर्शन, नवरात्रों में रोज बदलती है श्रंगार और सवारी

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Shashwat Tewari

लखनऊ । चैत्र नवरात्र के पॉचवे दिन मॉ स्कन्ध माता की पूजा अर्चना घर घर और मन्दिरों में की जाती है । भक्तजन व्रत, कीर्तन, भजन, कन्याभोज, मॉ के श्रंगार से ममतामयी मॉ की स्तुति कर रहे है । स्कन्ध माता भगवान शंकर के सेनापति पुत्र कुमार कार्तीकेय की मॉ होने के साथ साथ जगत माता भी है जो अपने पुत्रों के गुण दोष देखे बिना आशीर्वाद प्रदान करती है । अपने वायदे के अनुसार पत्रिका पॉचवे नवरात को विशेष भक्तिमय खबर लेकर आज फिर आप के बीच है । चौक स्थित बड़ी कालीजी मन्दिर, चन्द्रिका देवी मन्दिर, घसियारी मण्डी स्थित छोटी कालीबाड़ी के बाद आज हम आप को ले चलेंगेें राजधानी के पुराने लखनऊ से आगे, हरदोई रोड स्थित चौपटिया के संदोहन देवी मन्दिर । इस मन्दिर में देश विदेश से भक्तजन मॉ के चरणों का दर्शन प्राप्त करने आते है और ये अद्भुत दृश्य वर्ष में केवल दो बार ही भक्तों को सुलभ हो पाता है क्योकिं नवरात्रों के बाद आने वाली एकादशी को ही मॉ के भव्य श्रंगार के साथ मॉ के चरणों के दर्शन प्राप्त हो सकते है । एक और खासियत जो इस मन्दिर को दूसरे मन्दिरों से अलग करती है और वो ये कि प्रत्येक नवरात्रों में यहॉ मॉ का श्रंगार और सवारी प्रत्येक दिन बदली होती है । प्रतिप्रदा से लेकर नवमी तक रोज अलग अलग तरह का श्रंगार और सवारी लेकर मॉ भक्तों को दीदार देती है ।
चौपटिया चौराहा स्थित संदोहन देवी मंदिर मंदिर कितना पुराना है, इसकी सही जानकारी तो किसी के पास नहीं, लेकिन आस पास के लोग बतातें है कि यह 200 वर्ष से भी प्राचीन है। मंदिर के पीछे जो कुंड बना है उसमें एक पाताल तोड़ कुआं हुआ करता था, जहॉ पर बाबा लोग रहते थे, जिनकी समाधि आज भी वहीं बनी हुई है।
मंदिर के मुख्य पंडित ब्रजमोहन लाल शुक्ला ने बताया कि यहां लगभग 200 साल पहले एक संत हुए थे। मां ने उन्हें सपने में दर्शन दिए और बताया कि तालाब में उनकी पिंडी है उसे निकालो। संत ने कुछ भक्तों के साथ मिलकर तालाब में खोजबीन की। काफी मेहनत के बाद उन्हें मां की पिंडी मिल गई। एकादशी को मां की पिंडी स्थापित हुई। लोग बतातें है कि इस पिंडी को जितनी बार बिठाया गया, हर बार लेट जाती थी। इस वजह से मंदिर में लाते ही मां की पिंडी की स्थापना की गई। ऐसे मान्यता है कि एकादशी को दर्शन कर भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। मां सन्देहहरणी यानि हर प्रकार के सन्देहों का अंत करने वाली मां का जिक्र ललिता सहस्त्रनाम में भी आता है।
साल में दोनों नवरात्र के बाद की एकादशी को ही मां के चरणों के दर्शन होते हैं। मंदिर में देश-दुनिया के भक्त केवल मां के चरणों के दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दर्शन करने से हर मुराद पूरी होती है। बाकी समय मां के चरण ढके रहते हैं।
नवरात्रों के नौ दिन हर बार मां का अलग और आकर्षक श्रृंगार होता है। पहले दिन मां का शेर पर सवार श्रृंगार। दूसरे दिन कमल आसान पर विराजमान। तीसरे दिन मयूर पर कुमारी के रूप में दर्शन। चौथे दिन गरुण पर वैष्णवी स्वरूप में। पांचवें दिन सहस्त्र नैना वाली इंद्राणी के रूप और ऐरावत पर सवार। छठे दिन अर्धनारीश्वर के रूप में बैल पर सवार। सातवें दिन महिसासुर का वध करते हुए शेर पर सवार।
अष्टमी और नवमी के दिन माता सिंघासन पर विराजमान रहती हैं। दसवें दिन मां मगरमच्छ पर विराजमान होती है। ग्याहरवें दिन मां के चरणों के दर्शन होते हैं। इस दिन मां को लहंगा चोली और आभूषणों से श्रृंगार किया जाता है। मां अपने विविध रूपों में दर्शन देकर भक्तों की हर मुराद को पूरा करती है।
इस भक्तिमय श्रंखला के अन्तर्गत छठे नवरात को हम फिर मिलेंगें एक नई जगह और एक नई कहानी के साथ, तब तक समस्त सुधि पाठकों को जय माता दी ।

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