(Pi Bureau)
इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल से ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट अब इलेक्ट्रिसिटी, वाहनों, खेती और फैक्टरियों के साथ सबसे बड़े ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जकों की श्रेणी में शामिल हो चुका है. ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में डिजिटल तकनीक का योगदान फिलहाल 4 फीसदी हो चुका है. ऐसा अनुमान है कि 2025 में जितनी ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन होगा उसमें से 8 फीसदी हिस्सेदारी इंटरनेट की होगी.
डिजिटल तकनीक से जो ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन हो रहा है उसमें 80 फीसदी योगदान ऑनलाइन वीडियोज का है. रिपोर्ट्स में सामने आया है कि दुनियाभर में जितने भी वीडियो देखे जा रहे हैं उनमें से 60 फीसदी हिस्सा ऑनलाइन वीडियोज का है, जबकि 20 फीसदी वीडियो ही ऑफलाइन देखे जा रहे हैं. इसके अलावा 20 फीसदी हिस्सा वीडियो कॉलिंग के जरिए आता है.
हाई रिजॉल्यूशन वीडियो हैं चिंता का विषय
रिपोर्ट्स में सबसे ज्यादा चिंता 8K रिजॉल्यूशन वाले वीडियोज को लेकर व्यक्त की गई है. रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि जैसे जैसे 8K वाले वीडियोज की संख्या में वृद्धि होगी, वैसी ही ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन और ज्यादा बढ़ जाएगा.
साल 2018 में ऑनलाइन वीडियो से कुल 30 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ. चौंकाने वाली बात है कि इसमें से 27 फीसदी हिस्सा प्रोर्नोग्राफिक वीडियो देखने से आया था. प्रोर्नोग्राफिक वीडियो से इतनी ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन हुआ है जितना ही फ्रांस के सभी घरों में इस्तेमाल होने बिजली से होता है. इसी तरह जितना टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बिल्जियम में होता है उतना सिर्फ पोर्न देखने से हो रहा है.